तब जौनपुर जिले में माँ का ट्रांसफर हुआ था. हमारे नये स्कूल के पीछे वाले मोहल्ले में घर किराए पर लिया गया . माँ पापा के व्यवहार के कारण , हमेशा कि तरह पुरे मोहल्ले से अच्छा रेपो हो गया था. पडोसी थे घनश्याम चाचा , बायीं ओर उनका घर था और दाई तरफ उनकी कपडे कि दूकान . गली आखिर में जहाँ से पीछे मुड़ती थी वही से मुस्लिम बस्ती शुरू होती थी और गली के दुसरे छोर पर इस पार गल्ली भैया का तीन मंजीले का मकान था , ग्राउंड फ्लोर पर उसके किराने कि दूकान , और बाकि तल्लों पर तीनो भाई क्रमशः पन्नी , चुन्नी , और खुद गल्ली अपनी पत्नी , माँ और एक बच्चे के साथ रहते थे . और दूसरी तरफ बेलनी कि माँ का कच्चा घर था .
बेलनी कि माँ हमारे घर काम करती थी . फ्री में अपनी भुझे वाली मडई में हमारा दाना भी भुज देती थी . मैंने उसके पति को कभी नही देखा पर मेरे सामने ही वो दो बार प्रेग्नेंट हुई और उसने चौकी और नक्पोच्छां को जन्म दिया . उसकी मेरे उम्र कि छोटी सी बड़ी बेटी बेलनी , घर का सारा काम धाम करती थी. शाम को जब वो कुवें पर नहाती थी तो उसके बदन पर साबुन का सफ़ेद झाग गाढ़ा भूरा हो जाता था.दुबली पतली बेलनी कुवें से पानी खींचने में बड़ी एक्सपर्ट थी. एक दिन मेरे रिक्वेस्ट करने पर उसने बाल्टी कि डोर मेरे हाथ में थमा दी .ढीलने में तो मुझे बड़ा मज़ा आया . सरसरा कर बाल्टी निचे पानी तक पहुँच गयी. बेलनी ने झांक कर बताया पानी भर गया. जोश में मैंने भरी बाल्टी को ऊपर खिंचा लेकिन मै अचानक रस्सी पर झूल गयी. बाल्टी इतनी भारी थी कि मेरा सब बैलेंस ही गड़बड़ा गया. मै रस्सी के बल से सरक कर एक झटके में कुवें के मुह पर आ गयी. बेलनी ने मेरा शर्ट पीछे से पकड़ा और खिंच कर जगत पर गिरा दिया. लेकिन इन सब में मेरे होश ऐसे फाख्ता हुए कि हाथ से रस्सी छुट गयी और पल भर में जाकर बाल्टी समेत कुवें में डूब गयी. बेलनी कि माँ ने उसे बहुत पिटा उस दिन. वो उसे हमेशा मारती थी, उज़द्द तरीके से गाली देती थी जबकि बेलनी सुबह से रात तक घर का एक एक काम झाड़ू पोछा, बरतना, खाना , बकरी सब करती थी. दिन भर यहा वहा से परेशां थकी उसकी माँ बेलनी को ऐसे मारती थी कि लोग बचाने पहुँच जाते थे. उस दिन मैंने मम्मी से पूछा था -कहानियों वाली सौतेली माँ असलियत में बेलनी कि माँ जैसी ही होती है क्या ?
शायद मोहल्लों में लोग मार- झगडा कच कच बहुत करते हैं. बेलनी कि माँ बेलनी को मारती थी, गल्ली भैया गल्ली बोउ को मारते मारते सडक तक घसीट लाते थे, ऊपर वाली चाची अपने मनबढ़ बेटे से झगडती थीं, सीता कि अम्मा के यहा आये दिन उनके दामाद तमाशा करते थे, कभी पडोसी आपस में एक दुसरे से उलझ जाते, और कभी कभी कब्रिस्तान वाले मैदान में क्रिकेट खेलते लड़के एक दुसरे को बैट से धुन देते थे. रोज़ नया तमाशा.
मुसलमानों कि बस्ती में मुझे जुलाहों के घर पसंद थे . उनके आंगन में बैठ के शहतूत खाते हुए उनको कालीन बुनते देखना मुझे अच्छा लगता था. उनके कुनबे में एक सुल्ताना दीदी भी थीं. उनके पीछे मै ज्यादा पड़ती थी. बचे खुचे कुछ उन के गोलों के लिए जिनसे मै अपनी गुडिया के लिए स्कार्फ बुनती थी.
मैंने कभी खुद तो नहीं देखा पर एक दोपहर सीता कि दूकान टाफी खरीदने गयी थी, वहाँ बेलनी कि माँ सीता कि अम्मा से गल्ली और सुल्ताना का नाम जोड़ रही थी. सीता कि अम्मा जो सीता के बेटा न पैदा होने का रोना रो रही थीं चुप होकर उसकी बात सुनने लगीं. सुनने के बाद फिर अपना रोना रोने लगीं कि कैसे उनका दामाद सीता के बेटा न होने से उसे छोड़ने कि धमकी देता है और उन विधवा गरीब से जबरजस्ती पैसे लेकर जाता है. बेलनी कि माँ बोली बेटा होना ज़रूरी तो है ही, बेटियों कि लाइन लगा के किसी का भला हुआ है क्या? फिर बिना किसी भाव के बडबडाने लगी कि आखिर इसी कारण न उसके बाप और दादी ने उसे भूज़े कि भट्टी में झोंक दिया था. उसकी माँ न उठाती तो वो मर ही जाती. उस दिन मुझे समझ में आया कि उसके आधे शरीर पर जले का निशाँ कैसे है. सुन कर मेरा मन थोडा अजीब हो गया.
तसल्ली के लिये मै उठ के मै बगल में राधेश्याम अंकल कि क्लिनिक में आई . वे हमेशा कि तरह किसी मरीज़ को पानी चढाने में व्यस्त थे . उनकी क्लिनिक में मैंने कोई एसा मरीज़ नही देखा जिसे पानी न चढ़ता था. वे सबको पानी चढाते और पेशेंट्स के रिश्तेदार बाहर बैठ के एक दुसरे से दुखड़ा रोते कि अरे उनको तो ५ बोतल पानी चढ़ा , कोई कहता अरे इनको तो ७वा बोतल चढ़ रहा है . थोड़ी देर उनकी कुर्सी पर झुलने के बाद मैंने अंदर जाकर मरीज़ के पास ही उनसे पूछ लिया, कि क्या वास्तव में कोई छोटे बच्चे को आग में फेंक सकता है और अगर हा तो क्या सचमुच बचने कि भी सम्भावना होती है ?
खैर वहाँ से मुह लटकाए सोचते हुए मै घर कि तरफ मुड़ी तो देखा सब लोग अपने अपने छतो पर चढ़ के कब्रिस्तान वाले मैदान कि तरफ देख रहे थे. गल्ली बोउ रेलवे लाइन कि तरफ भागने कि कोशिश कर रही थी, और गल्ली भैया उन्हें दौड़ा दौड़ा कर मार रहे थे. मोहल्ले के लिए सब कुछ नोर्मल था . पापा आकर मुझे घर ले गये . उसी दिन मैंने सुना , माँ पापा आपस में डिस्कस कर रहे थे , जितनी जल्दी हो सके हम लोग दूसरी जगह किसी शांत इलाके में शिफ्ट हो जायेंगे.
एक शाम मै स्कूल से लौट रही थी. राधेश्याम अन्कल कि क्लिनिक के सामने पहुँच कर हमेशा कि तरह थोडा स्लो होकर मै जायजा लेने लगी कि आज कितने लोगो को पानी चढ़ रहा है . जायजे से नज़रे फेर कर मै जैसे ही सामने मुड़ी मेरी निगाह गल्ली के घर कि छत पर पड़ी. कोई अस्त व्यस्त पागलों जैसी बिखरे बालो वाली महिला बदहवास दौड़ते हुए छत कि दिवार फांद निचे कूदने कि कोशिश कर रही थी .मैंने देखा उसके शरीर में आग लगी हुई थी, जलन से परेशां वो छत से कूद कर मरने कि कोशिश में थी. मैंने अपना बैग सड़क पर फेंक दिया. अपना पेट दबा कर मै जितना तेज़ चिल्ला सकती थी , मैंने चिल्लाना शुरू किया. सब लोग गल्ली के छत कि ओर भागे . डाक्टर अंकल कम्बल लेकर दौड़े.
मै रोना चाह रही थी , पर शाक इतना जबरजस्त कि मैंने वो जल रही है वो जल रही है कि रट लगा रखी थी.
मै रोना चाह रही थी , पर शाक इतना जबरजस्त कि मैंने वो जल रही है वो जल रही है कि रट लगा रखी थी.
गल्ली बोउ ने आत्महत्या कि कोशिश कि थी , उन्हें जिला हस्पताल में भर्ती किया गया .शरीर ८०% ज़ल चूका था. आखिरी साँस गिनती बहु को उसकी सास नन्हे से बच्चे का हवाला देते हुए गिड़ गिड़ा रही थी कि वो अपने पति को बचा ले, वर्ना उसके बच्चे को दो रोटी देने वाला भी कोई नही होगा.
पारिवारिक दबाव से हस्पताल में अपनी मौत से ४ दिन पहले , गल्ली बोउ ने पोलिस को दिए बयान में कहा कि उनके शरीर में आग खाना बनाते वक्त स्टोव फट जाने से लगी. उनके पति या ससुराल के किसी भी व्यक्ति ने उन्हें कभी प्रताड़ित नही किया.
पुरानी आदत कि तरह मै कुवें पर लटक कर अंदर झांक रही थी. बेलनी पानी भरने आयी थी . आज पहली बार उसने चड्ढी नही फ्रोक पहनी थी वो भी नई. खुद ही बताया उसने कि उसके बाबु जी आये थे बम्बई से वही लाये है उसकी नयी फ्रोक.
हम मोहल्ले से बिल्कुल दूर एक अच्छी जगह सिफ्ट हो गये थे. अब स्कूल स्कूल बस से जाना पड़ता था. लगभग ५ महीने बाद बेलनी कि माँ हमारे घर आई थी . उसे पापा से दवा लेनी थी. वो प्रेग्नेंट थी, पापा उसे बता रहे थे, कि उसमे एनीमिया के स्पष्ट लक्षण है. वो पैसे का रोना रो रही थी , पापा उसे हरी सब्जी खाने कि सलाह दे रहे थे. मम्मी ने आस पड़ोस का हाल पूछा और वो लाइन से सबके बारे में बताने लगी. सीता को बेटा हुआ और उसका पति धूम धाम से उसको विदाई करके ले गया. उसने ये भी बताया कि गल्ली बोउ के मरने के ३ महीने बाद ही गल्ली सुल्ताना को अपने घर ले आया , तब से वो वही उसकी बीबी कि तरह रहती है, आदि आदि . मुझे बस गल्ली भैया कि खबर का इंतज़ार था, सुन कर मै अपना होम वर्क करने चली गयी.
मुझे कुवें कि याद आयी. उसकी दिवार पर लटक कर झांकने का मन कर रहा था. वहीं बैठ कर बेलनी से कंचा खेलने का मन मन किया . बस कुवें पर चुपचाप बैठने का मन हो रहा था.